उत्तराखंड बनने के बाद से उत्तराखंड के कई मैदानी और परवर्तीय क्षेत्रों में मुसलमानों की जनसख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है साथ ही इन स्थानों में नई मस्जिदों का निर्माण के साथ साथ पुरानी मस्जिदों के पुनर्निर्माण में भी बहुत तेजी से विकास हुआ । आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? क्या यह कोई सोची समझी चाल तो नहीं अन्यथा क्या कारण है इसके पीछे, यह एक बड़ा सवाल है?
आंकड़ों के मुताबिक मुस्लिमों की जनसख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी असम में हुई । 2001 में यहां मुस्लिम जनसख्या 30.9 फीसदी थी जो 2011 में 34.2 प्रतिशत हो गई । हालांकि इसके पीछे बांग्लादेश से आए अवैध अप्रवासी माने जाते हैं जो देश और असम दोनों के लिए बड़ी समस्या पैदा करते रहे हैं । पश्चिम बंगाल में भी यही हाल हैं। यहां 2001 में मुस्लिम जनसख्या 25.2 फीसदी थी जो 2011 में 27 फीसदी हो गई। कुल मिलाकर यहां एक दशक में 1.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि यह राष्ट्रीय औसत ज्यादा है।
उत्तराखंड में मुस्लिम जनसख्या 11.9 फीसदी से बढ़कर 13.9 फीसदी हो गई । हैरानी की बात यह है कि उत्तराखंड में 2 फीसदी की दर से मुस्लिम जनसख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई जबकि देश में यह आंकड़ा (2001-2011) 0.8 प्रतिशत है। इन राज्यों के अलावा कुछ और राज्यों में भी मुस्लिम जनसख्या तेजी से बढ़ी । केरल (24.7% से 26.6%), गोवा (6.8% से 8.4%), जम्मू -कश्मीर (67% से 68.3%), हरियाणा (5.8% से 7%) और दिल्ली (11.7% से 12.9%) वे राज्य हैं जहां मुस्लिम जनसंख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई। वैसे, खास बात यह है कि देश में मणिपुर एकमात्र ऐसा राज्य है जहां मुस्लिम जनसख्या कम हुई है। यहां मुसलमानों की जनसख्या दर में 0.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है ।
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मुज्जफरनगर, नजीबाबाद, बिजनौर, मेरठ जिलों से घिरे हरिद्वार और देहरादून जिलो में मुस्लिम वोट बैंक उत्तराखंड की राजनीति के साथ साथ सामाजिक व्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है, अपराध की दृष्टि से तो ये जिले सबसे ज्यादा मुस्लिम अपराधियों की वजह से प्रभावित है। देहरादून में आज़ादी से पूर्व काफी मुस्लिम जनसख्या थी विभाजन के दौरान यहां से लोग चले गए और अब उनके रिश्तेदार जो कि देहरादून के साथ लगे मुस्लिम बहुल जिलो में रहते थे, ज़मीनों के पुराने दस्तावेज निकाल कर देहरादून की जमीनों पर अपने दावे कर रहे हैं कब्जे कर रहे है, यह एक महत्त्वपूर्ण और चिंताजनक समस्या वाला विषय है, जोकि बेहद ही विचारणीय ।
उधम सिंह नगर में 2011 की दशकीय जनसख्या दर मुसलमानों की 33.40% और देहरादून में 32.48% की रही है, इसके अलावा रामनगर, कोटद्वार, हल्द्वानी, कालाढूंगी, टनकपुर बनबसा ऐसे शहर है जहां मुस्लिम जनसख्या दर 30% से ज्यादा हर दस साल में बढ़ती जा रही है । कारपेंटर, राज मिस्त्री, मजदूर, बैंड वादक, बगीचों खेतों में काम करने वाले मजदूरों में मुस्लिम ज्यादा हैं।
उत्तराखण्ड में मुस्लिमों की बढ़ती जनसख्या अन्य जिलों में 17 फीसदी के आसपास बढ़ रही है, बढ़ती जनसख्या के साथ साथ धार्मिक उन्माद की घटनाएं भी बढ़ रही हैं, उधम सिंह नगर और हरिद्वार जिलो में लव जिहाद की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है यहीं नही पौड़ी गढ़वाल जिले में पिछले दो सालों में मुस्लिम युवकों द्वारा हिन्दू लड़कियों को बहला फुसला कर भगा ले जाने की आधा दर्जन घटनाएं हुई है। उत्तराखण्ड में धारचूला सीमावर्ती कस्बा है जहां उत्तराखण्ड बनने से पहले तक इनर लाइन परमिट से जाया जाता था । आज इस कस्बे में मुसलमानों की बड़ी जनसख्या हो गयी है मस्जिद भी बन गई है, लोहाघाट, चंपावत ऐसे इलाके हैं जो नेपाल सीमा से लगे हुए है यहां भी बड़ी बड़ी मस्जिद बनती जा रही हैं, भवाली भीमताल नैनीताल जैसे पर्यटक शहरों में मुस्लिम जनसख्या ने आलीशान मस्जिदें खड़ी कर ली हैं ।
इन मस्जिद को बनाने वाली संस्थाओं के पास पैसा अचानक से कैसे और कहां से आया ये एक बड़ा सवाल है, कांग्रेस शासनकाल में मदरसों को खासतौर पर हरीश रावत सरकार ने अपनी वित्त पोषित योजनाओं से अल्पसंख्यक वज़ीफों के फर्जीवाड़ों से पनपने दिया । जिस पर अब आधार कार्ड के जरिए काफी अंकुश लगा है। उत्तराखण्ड में बाहरी प्रदेशों का व्यक्ति 3000 वर्ग फुट से ज्यादा जमीन नहीं ले सकता फिर भी यहां तेजी से मुसलमानों की जनसख्या बढ़ रही है।
सरकारी ज़मीनों पर कब्जे कर दरगाह और मस्जिद बनाई जा रही हैं, रेलवे की जमीनों पर आलीशान मकान बन गए हैं, हल्द्वानी रेलवे की ज़मीन पर बसी ढोलक बस्ती इस का उदाहरण है। इस बस्ती को हटाने के लिए उच्चतम न्यायालय का आदेश आ चुका है बावजूद इसके नैनीताल प्रशासन इस बस्ती को हटाने का साहस नहीं जुटा सका है, कॉर्बेट सिटी रामनगर में कोसी नदी किनारे हज़ारों लोग वन भूमि पर अवैध कब्जे किए हुए हैं और अब ये एक बड़ा वोट बैंक हैं। वनभूमि पर काबिज लोग मस्जिदों का निर्माण करके उसके आसपास पहले अपने कच्चे फिर पक्के मकान बना रहे हैं। बहरहाल यह एक चिंताजनक विषय है कि देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखण्ड में एक साजिश के तहत मुस्लिम जनसख्या बढ़ रही है।
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