भारत के महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil Jayanti) की आज (11 जून 2021) जयंती मनाई जा रही है । उनका जन्म 1897 में ब्रिटिश भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रांत (उत्तर प्रदेश) के शाहजहांपुर में हुआ था । राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil) ने अपने पिता से हिंदी सीखी और उर्दू सीखने के लिए उनको एक मौलवी के पास भेजा गया था । बिस्मिल न सिर्फ एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वो एक बेहतरीन कवि और अच्छे लेखक भी थे । उन्हें साल 1918 के मैनपुरी षडयंत्र और 1925 के काकोरी कांड में हिस्सा लेने के लिए जाना जाता है | लगभग 10 साल की अपनी प्राइवेट नौकरी के दौरान मुझें (रवि मैंदोला, वर्तमान में मैनेजिंग डायरेक्टर, डिजिटल योर लाइफ - www.digitalURlife) 3 वर्ष शाहजहांपुर में रहने का मौका मिला तो वहां के जन्में राजीव दीक्षित, राजीव सहाय, रोहित दीक्षित, त्रिलोक मिश्रा, पवन सहाय (तिलहर-शाहजहांपुर), आशीष सक्सेना कुछ घनिष्ट मित्र बनें जो अक्सर पंडित बिस्मिल जी के किस्से-कहानी बताया करते थे, वैसे तो किताबों में काफी बिस्मिल जी के बारे में पढ़ा ही था लेकिन साक्षात कोई बातये तो बात ही अलग होती हैं । चलिए जानते हैं राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती के इस खास अवसर पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक और दिलचस्प बातें, जो कभी सुनाई थी मेरे दोस्तों ने - राम प्रसाद बिस्मिल की शुरुआती शिक्षा घर पर ही हुई थी, उन्होंने घर पर ही अपने पिता से हिंदी सीखी और बाद में उन्हें उर्दू स्कूल में दाखिल कराया गया । कहा जाता है कि यहीं से उनमें उपन्यास और गजलों की किताबों को पढ़ने में दिलचस्पी जागने लगी. कुछ समय बाद राम प्रसाद बिस्मिल अपने पड़ोस में रहने वाले एक पुजारी के संपर्क में आए, जिनका उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा । कहा जाता है कि जब राम प्रसाद बिस्मिल महज 14 साल के थे, तब वो अपने माता-पिता से पैसे चुराते थे और उनसे किताबें खरीदते थें, क्योंकि उन्हें किताबों से बेहद लगाव था । बिस्मिल के पिता की आय बहुत कम थी, जिसके कारण परिवार को गुजारा काफी मुश्किलों से हो पाता था, ऐसे में घर की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से वो 8वीं तक ही अपनी स्कूली पढ़ाई कर पाए । उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलारानी था । राम प्रसाद बिस्मिल के दिल में क्रांति की अलख छोटी सी उम्र में ही जाग गई थी और वो महज 11 साल की उम्र में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े । खेलने-कूदने की उम्र में क्रांतिकारी आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से राम प्रसाद बिस्मिल एक वीर क्रांतिकारी के साथ-साथ बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी बन गए । राम प्रसाद बिस्मिल स्वामी सोमदेव से मिलने के बाद उनसे खासा प्रभावित हुए और उन पर आर्य समाज का भी बहुत ज्यादा प्रभाव देखने को मिला । बिस्मिल हिंदू-मुस्लिम एकता में काफी विश्वास रखते थे । अशफाक उल्ला खां और राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती ने हिंदू-मुस्लिम एकता की अनोखी मिसाल पेश की । आज भी दोनों की दोस्ती की मिसाल दी जाती है । राम प्रसाद बिस्मिल को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के आदर्शों ने अपनी ओर आकर्षित किया और इससे जुड़ने के बाद उनकी मुलाकात भगत सिंह, सुखदेव, अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद जैसे कई स्वसंत्रता सेनानियों से हुई, फिर साल 1923 में राम प्रसाद बिस्मिल ने सचिन नाथ सान्याल और डॉ. जादुगोपाल मुखर्जी के साथ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संविधान का मसौदा तैयार किया । अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग का ऐलान करते हुए हथियार खरीदने के इरादे से राम प्रसाद बिस्मिल ने अशफाक उल्ला खां के साथ काकोरी कांड की साजिश रची और 9 अगस्त 1925 को ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने की इस ऐतिहासिक घटना को अंजाम दिया । काकोरी कांड के बाद ब्रिटिश सरकार ने बिस्मिल को गिरफ्तार कर लिया और इस घटना को अंजाम देने के लिए उन्हें सजा-ए-मौत की सजा सुनाई गई । उन्हें 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर की जेल में फांसी दे दी गई । हालांकि भारत माता के लिए अपना बलिदान देने से पहले जेल में रहकर बिस्मिल ने कई क्रांतिवीरों के जीवन पर पुस्तकें लिखी । उन्होंने आत्मकथा भी लिखी जिसे उन्होंने अपनी फांसी के तीन दिन पहले तक लिखा । मैनपुरी षडयंत्र और काकोरी कांड को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राम प्रसाद बिस्मिल ने जेल में अपनी 200 पन्नों की आत्मकथा में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की पोल खोलकर रख दी थी, इसलिए उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक का प्रसार अंग्रेजों ने बैन कर दिया । बिस्मिल को जिस वक्त फांसी दी गई थी, उस समय उनकी उम्र महज 30 साल थी । बिस्मिल ने फांसी का फंदा अपने गले में डालने से पहले भी 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' कविता पढ़ी थी । उनके बलिदान ने पूरे हिंदुस्तान को हिलाकर रख दिया था । अपनी मातृभूमि के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले राम प्रसाद बिस्मिल की कुर्बानी और उनके जज्बे को आज भी लोग सलाम करते हैं ।
रवि मैंदोला | हरिद्वार | उत्तराखंड मैनेजिंग डायरेक्टर, डिजिटल योर लाइफ - www.digitalURlife