चातुर्मास का हिन्दू धर्म में विशेष आध्यात्मिक महत्व माना जाता हैं । इस अवधि में नियमों का पालन करते हुए व्रत करने वाले को अपनी मनोकामना पूर्ति में विशेष लाभ प्राप्त होता हैं ।
चातुर्मास क्या है जानिए ?
व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के 4 महीने को हिन्दू धर्म में ‘चातुर्मास’ कहा गया है । ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए ये माह महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है । चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है ।
चतुर्मास का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है । हिंदू पंचांग के अनुसार, चतुर्मास आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक रहता है । साल 2021 में चतुर्मास 20 जुलाई 2021 से शुरू होगा, इस दिन देवशयनी एकादशी है । इस एकादशी से भगवान विष्णु विश्राम अवस्था में आ जाते हैं इसलिए इस दिन से हर साल 4 महीनों के लिए चतुर्मास लगता है । 14 नवंबर 2021 को देवोत्थान एकादशी है, इस दिन से विष्णु भगवान विश्राम काल पूर्ण करके क्षीर सागर से बाहर आकर सृष्टि का संचालन करने लग जाते हैं। जब भगवान विष्णु विश्राम अवस्था में होते हैं तब भगवान रुद्र सृष्टि का संचालन करते हैं । आइए चतुर्मास के बारे में और भी बहुत कुछ जानते हैं…
चातुर्मास का महत्व :
चातुर्मास में एक स्थान पर रहकर जप और तप किया जाता है । चातुर्मास में भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार महीने के लिए विश्राम करते हैं ऐसे में सृष्टि का संचालन भगवान शिव अपने हाथों में लेते हैं । इसी महीने में ही भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना सावन भी मनाया जाता है ।
इन चार महीनों में सावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना गया है । इस माह में जो व्यक्ति भागवत कथा, भगवान शिव का पूजन,महामृत्युंजय जाप, नव ग्रह शान्ति, धार्मिक अनुष्ठान, दान करेगा उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा ।
वर्जित कार्य :
चातुर्मास में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं । इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता । श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है ।
चातुर्मास में क्या करें, क्या ना करे :
- मधुर स्वर के लिए गुड़ नहीं खायें।
- दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का त्याग करें।
- वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध का सेवन करें।
- पलंग पर शयन ना करें।
- शहद, मूली, परवल और बैंगन नहीं खायें।
- किसी अन्य के द्वारा दिया गया दही-भात नहीं खायें।
चातुर्मास के माह एवं मुख्य त्यौहार :
●आषाढ़ :
सबसे पहला महीना आषाढ़ का होता है, जो शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से शुरू होता हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन से भगवान् विष्णु शयन करते है। आषाढ़ के 15 दिन चतुर्मास के अंतर्गत आते हैं. इसलिए ऐसा भी कहा जाता है चतुर्मास अर्ध आषाढ़ माह से शुरू होता है. इस माह में गुरु एवं व्यास पूर्णिमा का त्यौहार भी मनाया जाता है, जिसमें गुरुओं के स्थान पर धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं. कई जगहों पर मेला सजता हैं.हमारे देश बहुत बड़े रूप में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती हैं.
●श्रावण :
दूसरा महीना श्रावण का होता है, यह महीना बहुत ही पावन महीना होता है, इसमें भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती हैं. इस माह में कई बड़े त्यौहार मनाये जाते हैं जिनमें रक्षाबंधन, नाग पंचमी, हरियाली तीज एवं अमावस्या, श्रावण सोमवार आदि विशेष रूप से शामिल हैं.
●भाद्रपद :
तीसरा महीना भादों अर्थात भाद्रपद का होता हैं. इसमें भी कई बड़े एवं महत्वपूर्ण त्यौहार मनायें जाते हैं जिनमें कजरी तीज, हर छठ, जन्माष्टमी, गोगा नवमी, जाया अजया एकदशी, हरतालिका तीज, गणेश चतुर्थी, ऋषि पंचमी, डोल ग्यारस, अन्नत चतुर्दशी, पितृ श्राद्ध आदि शामिल हैं.
●आश्विन माह :
चौथा महीना आश्विन का होता हैं. अश्विन माह में पितृ मोक्ष अमावस्या, नव दुर्गा व्रत, दशहरा एवं शरद पूर्णिमा जैसे महत्वपूर्ण एवं बड़े त्यौहार आते हैं.जिन्हें हम बडें ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.
●कार्तिक माह :
यह चातुर्मास का अंतिम महीना होता है, जिसके 15 दिन चतुर्मास में शामिल होते हैं. इस महीने में दीपावली के पांच दिन, गोपा अष्टमी, आंवला नवमी, प्रमोदिनी ग्यारस अथवा देव उठनी एकादशी जैसे त्यौहार आते हैं । इस माह में लोग अपने घर में साफ सफाई करते हैं, क्योकि इस माह में आने वाले दीपावली के त्यौहार का हमारे भारत देश में बहुत अधिक महत्व है । इसे लोग बहुत ही धूम धाम से मनाते हैं ।
चातुर्मास में किस किस देवी देवता की उपासना होती है?
- आषाढ़ के महीने में अंतिम समय में भगवान वामन और गुरु पूजा का विशेष महत्व होता है
- सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना होती है और उनकी कृपा सरलता से मिलती है
- भाद्रपद में भगवान कृष्ण का जन्म होता है और उनकी कृपा बरसती है
- आश्विन के महीने में देवी और शक्ति की उपासना की जाती है
- कार्तिक के महीने में पुनः भगवान विष्णु का जागरण होता है और सृष्टि में मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं।
आचार्य उमेश बडोला
ज्योतिषाचार्य व कर्मकांड एवं श्रीमद्भागवत कथा वक्ता
विवेक विहार दिल्ली || 9871565053