जानें आज का दुर्लभ संयोग : मोहिनी एकादशी में त्रिस्पृशा – प्रचलित कथा के साथ

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✡️दिनांक : 23-5-2021, “रविवार” || विक्रम संवत 2078 की वैशाख शुक्ल एकादशी || 10 प्रविष्टे गते || ज्येष्ठ मासे ✡️

दिनांक 23 मई 2021 को एकादशी तिथि 6:44 प्रात: तक है । तत्पश्चात द्वादशी तिथि 24 मई 2021 को रात्रि 3:39 तक है । रात्रि 3:42 पर त्रयोदशी तिथि आरंभ हो रही है, द्वादशी तिथि का सूर्योदय स्पर्श न करने के कारण क्षय तिथि माना जाता है । 24 मई 2021 को सूर्योदय के समय त्रयोदशी तिथि आरंभ हो रही है । 22 मई 2021 को दशमी युक्त एकादशी होने के कारण एकादशी व्रत का निषेध है । दशमी युक्त एकादशी का व्रत नहीं लिया जाता है । इस प्रकार यह मोहिनी एकादशी त्रिस्पृशाव्रत अर्थात तीन तिथियों को स्पर्श करने वाला व्रत संपूर्ण कामनाओं को देने वाला मोक्ष दायक एवं विजय को प्रदान करने वाला होता है । कृपया घर के सभी सदस्य यह एक दिन का व्रत अवश्य करें । जिंदगी मे ऐसे अवसर बार-बार नही आते ।

पद्मपुराण के अनुसार यदि सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक थोड़ी सी एकादशी, द्वादशी, एवं अन्त में किंचित् मात्र भी त्रयोदशी हो, तो वह ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ कहलाती है । यदि एक ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ को उपवास कर लिया जाय तो एक सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल (लगभग पुरी उम्रभर एकादशी करने का फल) प्राप्त होता है । ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ का पारण त्रयोदशी मे करने पर 100 यज्ञों का फल प्राप्त होता है । प्रयाग में मृत्यु होने से तथा द्वारका में श्रीकृष्ण के निकट गोमती में स्नान करने से, जो शाश्वत मोक्ष प्राप्त होता है । वह ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ का उपवास कर घर पर ही प्राप्त किया जा सकता है, ऐसा पद्मपुराण के उत्तराखण्ड में ‘त्रिस्पृशा-एकादशी’ की महिमा में वर्णन है । व्रत की समाप्ति के बाद अर्घ दान करें धूप दीप नैवेद्य अर्पण करके, भगवान की आरती उतारे उनके मस्तक पर शंख घुमाएं । फिर सद्गुरु की पूजा करें सद्गुरु को सुंदर वस्त्र पगड़ी पहनाये । सद्गुरु को भोजन करने के बाद दक्षिणा दें श्रीहरि के समीप जागरण करें तदनंतर अंत में भगवान को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को भोजन करने के पश्चात स्वयं भोजन करें ओम श्री कृष्णाय नमः

मोहिनी एकादशी की प्रथम प्रचलित कथा – मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद जब अमृत पीने के लिए देवता और दानवों के बीच विवाद छिड़ गया तब भगवान विष्णु सुंदर नारी का रूप धारण करके देवता और दानवों के बीच पहुंच गये। इनके रूप से मोहित होकर दानवों ने अमृत का कलश इन्हें सौंप दिया। मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया। इससे देवता अमर हो गये। जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे उस दिन एकादशी तिथि थी। भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है।

त्रेता युग में जब भगवान विष्णु राम का अवतार लेकर पृथ्वी पर आए और अपने गुरु वशिष्ठ मुनि से इस एकादशी के बारे में जाना था। संसार को इस एकादशी का महत्व बताने के लिए भगवान राम ने स्वयं भी यह एकादशी व्रत किया था। वहीं द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत को करने की सलाह दी थी।

मोहिनी एकादशी की द्वितीय प्रचलित कथा – भद्रावती नाम की सुंदर नगरी थी। वहां के राजा धृतिमान थे। इनके नगर में धनपाल नाम का एक वैश्य रहता था, जो धन-धान्य से परिपूर्ण था। वह सदा पुण्य कर्म में ही लगा रहता था। उसके पांच पुत्र थे। इनमें सबसे छोटा धृष्टबुद्धि था। वह पाप कर्मों में अपने पिता का धन लुटाता रहता था।

एक दिन वह नगर वधू के गले में बांह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया। इससे नाराज होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया तथा बंधु-बांधवों ने भी उसका परित्याग कर दिया। अब वह दिन-रात दु:ख और शोक में डूब कर इधर-उधर भटकने लगा। एक दिन किसी पुण्य के प्रभाव से महर्षि कौण्डिल्य के आश्रम पर जा पहुंचा। वैशाख का महीना था। कौण्डिल्य गंगा में स्नान करके आए थे। धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित हो मुनिवर कौण्डिल्य के पास गया और हाथ जोड़कर बोला, ‘‘ब्राह्मण ! द्विजश्रेष्ठ ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताएं जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो।’ 

कौण्डिल्य बोले: वैशाख मास के शुक्लपक्ष में ‘मोहिनी’ नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य से कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। धृष्टबुद्घि ने ऋषि की बताई विधि के अनुसार व्रत किया। जिससे वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर श्री विष्णुधाम को चला गया।

पंडित चक्रधर प्रसाद मैदुली
फलित ज्योतिष शास्त्री – जगदंबा ज्योतिष कार्यालय
सोडा सरोली रायपुर, देहरादून, उत्तराखंड
मूल निवासी – ग्राम वादुक, पत्रालय गुलाडी, पट्टी नन्दाक, जिला चमोली गढ़वाल, उत्तराखंड
फोन नंबर : 8449046631, 9149003677

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Piyush Pandey
3 years ago

So Great Ji

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