अमावस्या तिथि जेष्ठ मास को 27 गते 9 जून 2021 ,14:00 बजे से आरंभ होगी व 10 जून 28 गते जेष्ट ब्रहस्पतिवार को 16:21 तक रहेगी । इस लिए वट पूजा 10 जून को मान्य है । उत्तराखंड के वाणी भूषण पंचांग के अनुसार है । इस दिन सूर्य ग्रहण भी है परंतु भारतवर्ष में अदृश्य होने के कारण इसका कोई भी प्रभाव भारत में एवं व्रत में नहीं पड़ेगा । यह व्रत कथा के विषय में स्कंद पुराण के प्रभास खंड में इसका वर्णन मिलता है । भद्र देश के राजा अश्वपति सन्तानविहीन थे । राजा रानी दोनों ने प्रभाष छेत्र में जाकर ब्रह्मा शिष्या सावत्री की पूजा इस मंत्र से की ।
ओंकार पूर्वके देवी वीणा पुस्तक धारिणी । देव्यम्बिके नमस्तुभ्यमवैधब्यं प्रयच्छ मे ||
मन्त्र से प्रसन्न होकर भुर्भव: स्व:स्वरूपा सावत्री ने प्रसन्न होकर सन्तान का वर दिया । स्वंय पुत्री रूप मे जन्मी राजा ने पुत्री का नाम भी सावित्री रखा । सावित्री ने अपनी इच्छा से शास्वदेश में राजा द्युमत्सैन के पुत्र सत्यवान थे । राजा अचानक अंधे हो गए समय का लाभ पाकर रुक्मी ने इनके राज्य पर अधिकार कर लिया । राजा रानी अपने पुत्र को लेकर जंगल में तपस्या करने चले गए लकड़ी काट कर जीवन व्यतीत करते थे एवं पुत्र का पालन करते थे । इन्हीं के पुत्र का नाम सत्यवान था । इसी सत्यवान को सावित्री ने वर (पत्ति) के रूप में चुना । चुनाव कर के पिता के पास आई । वर का चुनाव बताया वहीं पर राजा के सामने बैठे नारद जी ने बताया कि सत्यवान की आयु केवल 1 वर्ष रह गई है । इस कारण इस से विवाह करना शुभ नहीं है ।
सावित्री नहीं मानी सावित्री ने कहा पिताजी जिसका वरुण मैंने एक बार कर दिया वही मेरा पति होगा । अब मैं इसमें कोई संशोधन नहीं कर सकती । सावित्री ने पिता के मना करने के बाद भी सत्यवान से शादी की व लकड़ी काट कर गुजारा करते थे । इसकी उम्र एक वर्ष थी उम्र के अंतिम दिन सावित्री सत्यवान के साथ जंगल गई । अंतिम समय सावत्री सत्यवान को लेकर एक वट व्रक्ष के नीचे बैठे थे । अचानक सत्यवान को चक्कर आया जमीन पर गिर पड़ा ।
सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रखा एवं मूल सावित्री देवी का अध्ययन किया व्रत रखा उसी दिन जेष्ठ मास की अमावस्या थी । इसी अमावस्या को वट सावित्री अमावस्या कहते हैं क्योंकि सावित्री ने अमावस्या के दिन वटवृक्ष अर्थात बरगद के वृक्ष के नीचे पूजन किया था । इतने में यमराज वहां पर आते हैं । सत्यवान के प्राण लेते हैं सावित्री यमराज की पीछे पीछे चलती है कहती है कि प्रभु जहां मेरे पति हैं मैं वही जाऊंगी । यमराज वर मांगने को कहते हैं सावित्री कहती है कि मेरे ससुर जी अंधे हैं इनको नेत्र प्रदान करो यह जीविका कैसे चलाएंगे । यमराज तथास्तु करके वरदान देकर आगे चलते हैं । सावित्री फिर पीछे पीछे चलती है पुनः यमराज कहते हैं अब क्या चाहिए सावित्री कहती है कि महाराज हमारा हारा हुआ राज्य हमें वापस दे दो ।
यमराज इस वरदान को भी दे देते हैं – सावित्री फिर पीछे पीछे चलती है यमराज क्रोधित होकर कहते हैं अब क्या चाहिए । सावित्री करती है प्रभु मेरी शादी की अभी 1 वर्ष नहीं हुए है मुझे पुत्र की कामना है यमराज जल्दी बाजी में तथास्तु कहकर सौ पुत्रों का वरदान दे देते हैं । सावित्री फिर पीछे पीछे चलती है कहती है कि यमराज ने क्रोधित होकर कहा कि अब आपको क्या चाहिए । तो सावित्री कहती है प्रभु आप मेरे पति को ले जा रहे हो पति को आप अपने साथ ले जाएंगे तो मुझे पुत्र प्राप्त कैसे होगा । यह बात सुनकर यमराजा हार मानता है और चने के दाने के रूप में सावित्री को उसके पति सत्यवान की आत्मा दे देता है । सावित्री अपने पति के पास आती है चने का दाना अपने पति के मुंह पर रखती है तो सत्यवान खड़े हो जाते हैं ।
इस प्रकार से वट सावित्री व्रत में वटवृक्ष बरगद के वृक्ष के नीचे सत्यवान सावित्री यमराजा एवं वट वृक्ष का पूजन एक साथ किया जाता है । इस व्रत को कुंवारी लड़की, सौभाग्यवती स्त्रियां एवं विधवा स्त्रियों सभी कर सकती है । इसमें चने का प्रसाद का विवरण अधिक है फिर भी नारियल, छुहारा, अनार, जामुन, नारंगी, ककड़ी आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर कंठ सूत्र को सुंदर केसर कुमकुम की रंगों से मंत्रोच्चारण पूर्वक उपरोक्त श्लोक को पढ़ते हुए पूजन करना चाहिए ।
यह व्रत समस्त प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला होता है । इस व्रत के विषय में महर्षि वेदव्यास जी स्कंदमहापुराण प्रभास खण्ड अंतर्गत सत्यवान सावित्री वटवृक्ष एवं यमराजा के पूजन का वर्णन किया है । आप इस व्रत को कल 10 जून 2021 को आरंभ करके 11 जून 2021 को सूर्य भगवान को अर्घ देने के बाद इस व्रत का उद्यापन कर सकते है ।