25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था । तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी । स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था । आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई । इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया ।
प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया । जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा था ।
मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें इंदिरा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था । लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी । उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय । अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया । इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं । यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबन्धित कर दिया गया क्योंकि माना गया कि यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है तथा इसका बड़ा संगठनात्मक आधार सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन करने की सम्भावना रखता था । पुलिस इस संगठन पर टूट पड़ी और उसके हजारों कार्यकर्ताओं को कैद कर दिया गया । आरएसएस ने प्रतिबंध को चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने प्रतिबंध के खिलाफ और मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ सत्याग्रह में भाग लिया ।
सिखों द्वारा विरोध
सभी विपक्षी दलों के नेताओं और सरकार के अन्य स्पष्ट आलोचकों के गिरफ्तार किये जाने और सलाखों के पीछे भेज दिये जाने के बाद पूरा भारत सदमे की स्थिति में था । आपातकाल की घोषणा के कुछ ही समय बाद, सिख नेतृत्व ने अमृतसर में बैठकों का आयोजन किया जहां उन्होंने “कांग्रेस की फासीवादी प्रवृत्ति” का विरोध करने का संकल्प किया । देश में पहले जनविरोध का आयोजन अकाली दल ने किया था जिसे “लोकतंत्र की रक्षा का अभियान” के रूप में जाना जाता है । इसे 9 जुलाई को अमृतसर में शुरू किया गया था ।
आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज़ होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी । चुनाव में आपातकाल लागू करने का फ़ैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ । ख़ुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं । जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने । संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ । कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली । नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फ़ैसलों की जाँच के लिए शाह आयोग गठित की गई । हालाँकि नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरूनी अंतर्विरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई । उप प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे । इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई लेकिन चली सिर्फ़ पाँच महीने. उनके नाम कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया ।
घटनाक्रम : 1975
- 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दोषी पाया और छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया । इंदिरा गांधी पर वोटरों को घूस देना, सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल, सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल जैसे 14 आरोप सिद्ध हुए लेकिन आदतन श्रीमती गांधी ने उन्हें स्वीकार न करके न्यायपालिका का उपहास किया । राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था । जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने यह फैसला सुनाया था ।
- 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी जो कि होना भी जरुरी था क्योकि राजतन्त्र में ऐसा ही होता है ।
- 25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के न चाहते हुए भी इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वाहन किया ।
- 25 जून 1975 को राष्ट्रपति के अध्यादेश पास करने के बाद सरकार ने आपातकाल लागू कर दिया ।
घटनाक्रम : 1975
- सितम्बर 1976 – संजय गाँधी ने देश भर में अनिवार्य पुरुष नसबंदी का आदेश दिया । इस पुरुष नसबंदी के पीछे सरकार की मंशा देश की आबादी को नियंत्रित करना था । इसके अंतर्गत लोगों की इच्छा के विरुद्ध नसबंदी कराई गयी । कार्यक्रम के कार्यान्वयन में संजय गांधी की भूमिका की सटीक सीमा विवादित है, कुछ लेखकों ने गांधी को उनके आधिकारिकता के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराया है, और अन्य लेखकों ने उन अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए जिन्होंने स्वयं गांधी के बजाय कार्यक्रम को लागू किया था । रुखसाना सुल्ताना एक समाजवादी थीं जो संजय गांधी के करीबी सहयोगियों में से एक होने के लिए जानी जाती थीं और उन्हें पुरानी दिल्ली के मुस्लिम क्षेत्रों में संजय गांधी के नसबंदी अभियान के नेतृत्व में बहुत कुख्यातता मिली थी ।
घटनाक्रम : 1977
- 18 जनवरी – इन्दिरा गांधी ने लोकसभा भंग करते हुए घोषणा की कि मार्च मे लोकसभा के लिए आम चुनाव होंगे । सभी राजनैतिक बन्दियों को रिहा कर दिया गया ।
- 23 मार्च – आपातकाल समाप्त
- 16 – 20 मार्च – छठे लोकसभा के चुनाव सम्पन्न । जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई । संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ । स्वयं इंदिरा गांधी और संजय गांधी चुनाव हार गए । मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने । कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली ।
- नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए निर्णयों की जाँच के लिए शाह आयोग गठित किया ।