हरिद्वार : श्राद्ध में पंचबली क्यूँ आवश्यक है ? जानें श्राद्ध की सभी तिथियां – आचार्य उमेश बड़ोला

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आज हम आचार्य उमेश बडोला, ज्योतिषाचार्य व कर्मकांड एवं श्रीमद्भागवत कथा वक्ता जी के इस लेख के माधयम से जानेगें कि श्राद्ध कैसे करें ? श्राद्ध कैसे किया जाता है ? श्राद्ध क्यूँ किया जाता है ? श्राद्ध कैसे निकला जाता है ? श्राद्ध करने का क्या महत्त्व है ?

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को श्रद्धा पूर्वक पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्यादि की प्राप्ति करता है। यही नहीं, पितरों की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। आश्विन मास के पितृ पक्ष में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं। अतएवं प्रत्येक सनातन सद्गृहस्थ का धर्म है कि वह पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध एवं तर्पण अवश्य करें तथा अपनी शक्ति के अनुसार फल-मूल जो भी सम्भव हो, पित्तरों के निमित्त प्रदान करें। यदि इस पक्ष में उन्हें पिण्डदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलती है तो वे शाप देकर जाते हैं। पितृपक्ष पितरों के लिये पर्व का समय है, अतएवं इस पक्ष में श्राद्ध अवश्य किया जाना चाहिये।

मार्कण्डेय पुराण में श्राद्ध के फल के विषय मे लिखा है –
आयु: प्रजां धनं विद्याम स्वर्ग मोक्ष सुखानि च।
प्रयच्छन्ति तथा राज्यमं पितर: श्राद्ध तर्पिता:।।
अर्थात श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।

पहला श्राद्ध पूर्णिमा से शुरू होता है। इस दिन पहला श्राद्ध कहा जाता है, जिन पितरों का देहांत पूर्णिमा के दिन हुआ हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन किया जाता है।  इन 15 दिनों में सभी अपने पितरों का अश्विनी मास में 15 दिन श्राद्ध के लिए माने गए हैं। पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक का समय पितरों को याद करने के लिए मनाया गया है। सबसे पहला श्राद्ध पूर्णिमा से शुरू होता है। इस दिन पहला श्राद्ध कहा जाता है, जिन पितरों का देहांत पूर्णिमा के दिन हुआ हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन किया जाता है।  इन 15 दिनों में सभी अपने पितरों का उनकी निश्चित तिथि पर तर्पण, श्राद्ध करते हैं। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देकर प्रस्थान करते हैं। अमावस्या के दिन पितरों को विदा दी जाती है।  11 सितम्बर को सूर्योदय के साथ हो आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि लग रही है अत:  पितृ पक्ष का आरम्भ 11 सितम्बर को हो जाएगा ।

परंतु पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म भाद्र पद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को ही किया जाता है जो 10 सितंबर दिन शनिवार को ही है। इसलिए महालय का आरम्भ 10 सितंबर शनिवार से ही हो जाएगा। जिस तिथि में पितर देव दिवंगत हुए होते है उसी तिथि पर पितृपक्ष में तिथियों के अनुसार श्राद्ध कर्म एवं तर्पण किया जाना शास्त्र सम्मत है। संतान की दीर्घायु एवं कुशलता की कामना से किया जाने वाला परम पुनीत जियुतिया ( जियुतपुत्रिका ) का व्रत पूजन अष्टमी श्राद्ध के दिन किया जाता है, इसलिए जितिया का व्रत रविवार 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा और इसका पारण सोमवार 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा. जबकि सोमवार 19 सितंबर की सुबह 6.10 पर सूर्योदय के बाद माताएं व्रत का पारण कर सकती है इस प्रकार 11 सितम्बर से शुरू हो रहे पितृ पक्ष, 25 सितंबर को समाप्त होंगे। 

★ पूर्णिमा का श्राद्ध एवं तर्पण 10 सितंबर दिन शनिवार 
★ प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण 11 सितंबर दिन रविवार 
★ द्वितीया का श्राद्ध एवं तर्पण12 सितम्बर दिन सोमवार 
★ तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण 13 सितंबर दिन मंगलवार
★ चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण 14 सितंबर दिन बुधवार 
★ पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण 15 सितंबर दिन गुरुवार
★ षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण 16 सितंबर दिन शुक्रवार 
★ सप्तमी का श्राद्ध एवं तर्पण 17 सितंबर दिन शनिवार
★ अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण 18 सितंबर दिन रविवार 
★ नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण 19 सितंबर दिन सोमवार 
★ दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण 20 सितंबर दिन मंगलवार 
★ एकादशी का श्राद्ध तर्पण 21 सितंबर दिन बुधवार 
★ द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण 22 सितंबर दिन गुरुवार
★ त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण 23 सितंबर दिन शुक्रवार 
★ चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण 24 सितंबर दिन शनिवार
★ अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण 25 सितंबर दिन रविवार

श्राद्ध में पंचबली आवश्यक है :

इस पक्ष में पितृ की तिथि को जलमिश्रित तिल से तर्पण, ब्राह्मण-भोजन तथा पंचबली आवष्यक हैं। बहुत से सज्जन जल-तिल से तर्पण तथा ब्राह्मण-भोजन तो करवा देते हैं परंतु पंचबली नहीं करवाते। अतः श्राद्ध के दिन जल-तिल तथा ब्राह्मण-भोजन के साथ-साथ ‘पंचबली’ अवश्य करना चाहिये, उसका नियम इस प्रकार है- श्राद्ध के निमित्त भोजन तैयार होने पर एक थाली में पाँच जगह थोड़े-थोड़े सभी प्रकार के भोजन परोसकर हाथ में जल, अक्षत, पुष्प, चन्दन लेकर निम्नलिखित संकल्प करें- अद्यामुक गोत्र अमुक शर्मा (वर्मा/गुप्तो वा) अहममुकगोत्रस्य मम पितुः (मातुः भ्रातुः पितामहस्य वा) वार्षिकश्राद्धे (महालयश्राद्धे) कृतस्य पाकस्य शुद्ध्यर्थं पंचसूनाजनितदोषपरिहारार्थं च पंचबलिदानं करिष्ये।

पंचबलि-विधि :

(1) गोबलि (पत्ते पर) : मण्डल के बाहर पश्चिम की ओर निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए सव्य होकर गोबलि पत्ते पर दें (पंचबली का एक भाग गाय को खिलायें) – ऊँ सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः। प्रतिगृह्वन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः।। इदं गोभ्यो न मम।

(2) श्वानबलि (पत्ते पर): जनेऊ को कण्ठी कर निम्नलिखित मंत्र से कुत्तों को बलि दें (पंचबली का यह भाग कुत्ते को खिलायें) – द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोöवौ। ताभ्यामन्नं प्रयच्छामि स्यातामेतावहिंसकौ।। इदं श्वभ्यां न मम।

(3) काकबलि (पृथ्वी पर): अपसव्य होकर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर कौओं को भूमि पर अन्न दें (पंचबली का यह भाग कौओं के लिये छत पर रख दें)- ऊँ ऐन्द्रवारूणवायव्या याम्या वै नैर्ऋतास्तथा। वायसाः प्रतिगृह्वन्तु भूमौ पिण्डं मयोज्झितम्।। इदमन्नं वायसेभ्यो न मम।

(4) देवादिबलि (पत्ते पर): सव्य होकर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर देवता आदि के लिय अन्न दें (पंचबली का यह भाग अग्नि के सपुर्द कर दें) – ऊँ देवा मनुष्याः पशवो वयांसि सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसंघाः। प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्।। इदमन्नं देवादिभ्यो न मम।

(5) पिपीलिकादिबलि (पत्ते पर): इसी प्रकार निम्नांकित मंत्र से चींटी आदि को बलि दें (पंचबली का यह भाग चींटीयों के लिये चींटियों के बिल के पास रख दें)- पिलीलिकाः कीटपतंगकाद्या बुभुक्षिताः कर्मनिबन्धबद्धाः। तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयान्नं तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु।। इदमन्नं पिपीलिकादिभ्यो न मम।

पंचबलि देने के बाद एक थाली में सभी रसोई परोसकर अपसव्य और दक्षिणाभिमुख होकर निम्न संकल्प करें- उपर्युक्त संकल्प करने के बाद ‘ऊँ इदमन्नम्,’ ‘इमा आपः’, ‘इदमाज्यम्’, ‘इदं हविः’ इस प्रकार बोलते हुये अन्न, जल, घी तथा पुनः अन्न को दाहिने हाथ के अँगूठे से स्पर्श करें। पश्चात् दाहिने हाथ में जल, अक्षत आदि लेकर निम्न संकल्प करें- ब्राह्मण-भोजन का संकल्प – अद्यामुक गोत्र अमुकोऽहं मम पितुः (मातुः वा) वार्षिक श्राद्धे यथासंख्याकान् ब्राह्मणान् भोजयिष्ये। पंचबलि निकालकर कौआ के निमित्त निकाला गया अन्न कौआ को, कुत्ता का अन्न कुत्ता को और सब गाय को देने के बाद निम्नलिखित मंत्र से ब्राह्मणों के पैर धोकर भोजन करायें।

इसके बाद उन्हें अन्न, वस्त्र और द्रव्य-दक्षिणा देकर तिलक करके नमस्कार करें। भगवान् को नमस्कार करें – प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्। स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादिति श्रुतिः।।

आचार्य उमेश बडोला
ज्योतिषाचार्य व कर्मकांड एवं श्रीमद्भागवत कथा वक्ता
विवेक विहार दिल्ली || 9871565053

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